वेद-आधारित धर्मशास्त्र का प्रचार
भारतीय सनातन संस्कृति का मूलाधार वेद हैं। वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, अपितु सम्पूर्ण जीवन के सम्यक् मार्गदर्शक हैं। वेदों पर आधारित धर्मशास्त्र—जैसे मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, गौतम धर्मसूत्र आदि—व्यक्ति और समाज के व्यवहार, आचरण, कर्तव्य और प्रायश्चित्त के स्पष्ट विधान प्रस्तुत करते हैं।
आधुनिक समय में जहाँ नूतन व्यवस्थाएँ विकसित हुई हैं, वहीं सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए वेदानुकूल धर्म-शास्त्र आचरण के ज्ञान की अत्यावश्यकता है, जिससे वे अपने जीवन को मर्यादित, संतुलित एवं आध्यात्मिक उन्नति से युक्त बना सकें।
‘धर्म’ शब्द की व्युत्पत्ति 'धृ' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है—धारण करना। अतः जो जीवन, समाज और ब्रह्माण्ड की सम्यक् धारण शक्ति है, वही धर्म है। धर्मशास्त्रों में धर्म के चार प्रमुख स्तम्भ बताए गए हैं: सत्य, तप, दान, ब्रह्मचर्य।
श्रुति अथवा वेदों में बीज रूप से विद्यमान धर्म के इन चार स्तंभों का विस्तार धर्मशास्त्रों में हुआ है। धर्मशास्त्रों का कार्य वेदवचनों का व्यावहारिक रूप में प्रस्तुतीकरण है।
वेद-शास्त्र शिक्षा केवल गुरुकुलों तक सीमित न रहकर अब आधुनिक शिक्षा संस्थानों में भी उसका समावेश आवश्यक है। यह शिक्षा केवल आस्था का विषय नहीं, अपितु राष्ट्र के चरित्र-निर्माण की जड़ है।
उपर्युक्त उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए सर्व प्रथम हम आचार्य वैद्यनाथ दीक्षित के महान धर्मशास्त्रीय निबन्ध ग्रंथ स्मृतिमुक्ताफलम् को भाषानुवाद सहित मोबाइल ऐप हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं।
— विद्यावारिधि आ० दीनदयाल मणि त्रिपाठी, कुलपति, आदि शङ्कर वैदिक विद्या संस्थान